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अर्थ : कर्मकाण्ड करते समय विधिपूर्वक स्थापित की जाने वाली गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिण नामक अग्नि।
उदाहरण : यज्ञ कुंड में अग्नित्रय की प्रतिस्थापना की जा रही है।
पर्यायवाची : अग्नित्रेता
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